Missing Aloneness

SIFAR

11/23/2025

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वो अकेलापन अब भी दिल को कुछ कह जाता है…

जब मैं थक जाता हूँ समझा–समझा कर,

जब मैं टूट जाता हूँ माँफ़ियाँ माँग–माँग कर,

ख़ुद को हराकर, मनाकर,

अपने ना किए पर पछताकर,

फिर वही दौर दोहराता हूँ…

तब सोचता हूँ—

वो ख़ालीपन कितना अच्छा था…

मैं था, मेरी तसव्वुरात थे, मेरी ख़ामोश क़लम थी।

वो बेफ़िक्र धड़कनें… वो बेझिझक साँसें…

सब कुछ आज भी रूह को छू जाते हैं।

आज मैं अपनी हर हरकत का हिसाब देता फिरता हूँ,

और मेरा अपना अक्स मुझे तनबीह करता है—

“कब तक दूसरों के ज़ब्त में क़ैद रहेगा?

बाहर निकल… एक बार खुद को देख।”

वो जिसका तू मुतअल्लिक़ है…

वो तेरा नहीं,

वो तेरा रफ़ीक़ नहीं।

तेरा असल मुसाहिब…

तेरा मुअव्विन… तेरा मुनिस —

तू ख़ुद ही है… कोई और नहीं।

SIFAR